Sunday, May 19, 2024

गुब्बारे= बाल गीत=देवेंद्र कुमार ==

 

गुब्बारे= बाल गीत=देवेंद्र कुमार

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कितने सुन्दर हैं गुब्बारे

रंग-बिरंगे उड़ते तारे

मैले कपड़ों वाली लड़की

बेच रही देखो गुब्बारे

 

ले लो मुन्नी, ले लो भैया

रोटी तभी तो देगी मैया

भूखी आंखों वाली लड़की

बेच रही देखो गुब्बारे

 

चाहे कैसा भी मौसम हो

गरमी ज्यादा या फिर कम हो

नंगे पैरों वाली लड़की

बेच रही देखो गुब्बारे

 

ले लो उसके सब गुब्बारे

रंग-बिरंगे प्यारे, प्यारे

अपनी बहना जैसी लड़की

बेच रही देखो गुब्बारे=

 बाल गीत=देवेंद्र कुमार

 


Monday, November 20, 2023

नंगे पांव- बाल गीत- देवेंद्र कुमार

      नंगे पांव- बाल गीत- देवेंद्र कुमार

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गर्म सड़क पर नंगे पांव

क्यों चलते कुछ लोग!

           =   

बड़ी-बड़ी दुकान सजी हैं

बाजारों में धूम मची है

कुछ जेबों में सारा पैसा

कैसा है संजोग

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रोटी की तो कमी नहीं है

कुछ लोगों को भूख नहीं है

फिर भी ऐसे कितने सारे

इसका सहें वियोग

          =

 

मेहनत से तो जादू होता

फिर क्यों मेहनतकश है रोता

कहीं बहुत गड़बड़ है भाई

कैसे सुधरे रोग

          =

गर्म सड़क पर नंगे पांव

क्यों चलते है कुछ लोग

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Friday, October 27, 2023

खेल -कविता-देवेंद्र कुमार

 

                 खेल -कविता-देवेंद्र कुमार

                         ==

                 तो तुमने रोटी नहीं खाई

        दिख रहा है मुझे कि तुमने नहीं खाई

         जब आदमी मेहनत से कमाता है

          तभी तो हाथ मुंह तक जाता है

           तुम कह रहे हो नहीं खाई

         क्यों नहीं खाई

         प्रश्न तो बनता ही है

                     आखिर क्यों ?

           तुम बताओगे

            प्रश्न आँखें खोलेगा

             बताने -पूछने का खेल चलता आ रहा है

                      हमें आना होगा इस से बाहर

           समस्या तुम्हारी

          बन गई सुविधा किसी की

         समां गई प्रश्न में

         सब कहते रहे

        सब सुनते रहे

                    ==

                          ==          

Thursday, September 21, 2023

स्वप्न कैसे खुलें =गीत=देवेंद्र कुमार

 

 स्वप्न कैसे खुलें =गीत=देवेंद्र कुमार

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बंद हैं खिड़कियां

अनमने पाँव हैं

रास्ते  में कहीं

अनछुए गाँव हैं

चाह काँटा बनी

आस तो मर रही

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पत्र क्या क्या कहें

अनलिखे रह गए

भाव बांधे नहीं

शब्द ही बह गए

स्वप्न कैसे खुलें

आँख तो भर रही

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कोई आ जायेगा

पुल बनेगा नहीं

विष ही मिल जायेगा

जल छलेगा कहीं

डूबने की जुगत

लो नदी कर रही

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Saturday, September 9, 2023

पानी को धोना है -बाल गीत -देवेंद्र कुमार

 

पानी को धोना है -बाल गीत -देवेंद्र कुमार

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पानी के हाथ नहीं

फिर भी बुलाये

बिना पैर देखो

चलता ही जाए

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उतरा पहाड़ों से

बारिश में नहाया

खेतों में फ़ैल गया

हरियाली लाया

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 शहरों से निकला

  मुंह काला करके

  नालों में अटका

  कीचड़ में फंस के

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आओ सब मिल कर

पानी को धोएं

गन्दा जो करते

जी भर के रोयें

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Saturday, August 26, 2023

रमिया के भगवान् -कविता-देवेंद्र कुमार

 

            रमिया के भगवान् -कविता-देवेंद्र कुमार

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एक से बदहाल

रमिया और उसके भगवान

खंडहर दीवार का

भूला हुआ आला

कुछ धब्बे सिंदूरी

हो गए काले

बिखरे हैं फूल मुरझाये हुए

अतीत प्रतिष्ठा की स्मृति

कौन ध्यान दे इस भगवान् पर

गुज़रते हैं लोग बेखबर

++

एक रात लौटते हुए हाड़तोड़ काम से

मिली रमिया भगवान् से

फटे आँचल से पोंछा ,दुलराया

बुहारा पुरानी  धूल को

सर टिकाये

रोती  रही देर तक

क्या कहे कैसी शिकायत

दिलाये याद किस आस्था की

अश्रु अर्घ्य बेमोल

हाथों से टटोला

जैसे बरसों बाद घर फिरे

बेटे को पुचकारे

छू  छू कर अपनी थाती संभाले

क्यों  हो गए  

चुप गुमशुदा

किसी को कुछ न देने की

सजा पा  रहे हो

क्यों मेरी तरह हुए जा रहे हो

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Wednesday, August 16, 2023

मैं था ईश्वर –कविता-- देवेंद्र कुमार

 

मैं था ईश्वर –कविता-- देवेंद्र कुमार

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अब नहीं रह गया हूँ वही

मतलब ईश्वर

अच्छा था पल जो बीत गया

मैं था सब कुछ

मालिक अपने संसार  का

टूट गया भरम

मिला नए  हैरान ईश्वर से

तो कोई और भी था मेरे जैसा

उसे भी मिला था ईश्वर एक

उसकी तरह परेशान

छोड़ने को आतुर

अपना ईश्वरत्व

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उससे भी पहले

मेरी और उसकी तरह

कितने ईश्वर

सभी बैचैन ,छटपटाते हुए

प्रश्न उठा =आखिर चाहिए क्या मुझे

हम ईश्वरों को ?

हमें वही चाहिए वही

जो है हमसे कितना छोटा

इतना कितना बड़ा

कि सारे ईश्वर हो गए लघु से भी लघु

कैसे पीछा छुडाएं  अपने ईश्वरत्व से

मुझे बनना है वही

मतलब तुम जैसा 

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गुब्बारे= बाल गीत=देवेंद्र कुमार ==

  गुब्बारे = बाल गीत=देवेंद्र कुमार         == कितने सुन्दर हैं गुब्बारे रंग-बिरंगे उड़ते तारे मैले कपड़ों वाली लड़की बेच रही देख...